Gunjan Kamal

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प्यार जो मिला भी और नहीं भी भाग :- १९

                                                 भाग :- १९


उन्नीसवां अध्याय शुरू 👇


इस जीवन में हम सभी अलग-अलग लोगों से मिलते है, जिन्हें हम नहीं जानते उससे भी हमारी मुलाकात हो ही जाती है लेकिन उनके कुछ देर के मिलने के कारण हम पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन हमारे जीवन में ऐसे भी लोग हैं जो हमारे आसपास है, हमारे करीबी हैं, हमारे परिवार में हैं और यें वैसे लोग हैं जो हमारे जीवन को या तो बना देते हैं या फिर बिगाड़। मेरे कहने का तात्पर्य है ये है कि हमारे जीवन से जुड़े कुछ लोग हमारी जिंदगी  को  स्वर्ग या नरक दोनों में से कुछ भी बना सकते है क्योंकि ये उनके हाथ में है और ये उनके हाथ में कैसे हैं ये मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा। पहले तुम यह जान लो कि हमारे आसपास रहने वाले लोग किस प्रवृत्ति के होते हैं इससे तुम्हें उनके स्वभाव के बारे में मालूम होगा और तुम्हें  उन्हें पहचानने में आसानी होगी।


ये दुनिया बहुत छोटी है या फिर हमारी  जिन्दगी बहुत लंबी है इस बात पर बहस ना करते हुए हम ये जानते हैं कि  इस लंबी सी जिन्दगी और बहुत ही छोटी इस दुनिया में हम सभी  आए दिन अनेकों लोगों से मिलते हैं। घर के भीतर जो लोग अपना  जीवन बसर करते हैं  उनकी दुनिया इसी चारदीवारी के अंदर ही होती है। उदाहरण के लिए तुम अपनी माॅं और दादी को ही देख सकते हो। शुरू से ही उनकी दुनिया यह घर -परिवार और आसपास के लोग और खेत खलिहान ही हैं। वें दोनों वही तक जाते भी हैं और अपनी सोच को वही केंद्रित भी करते हैं। घर में रहने वाले लगभग सभी लोगों के साथ ऐसा ही होता है  लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनका पूरा दिन दूसरे लोगों से मिलते-जुलते ही बीतता है। इसमें तुम मेरा ही उदाहरण ले सकते है। एक दिन में हमारी दुकान पर ना जाने कितने नए चेहरे आते है और हम उन्हें देखते है। कभी-कभी तो उनके नामों से भी हमारा परिचय हो जाता है।


इन्हीं लोगों में से कुछ लोग बहुत खास होते हैं जो हमेशा के लिए हमारी जिन्दगी में शामिल हो जाते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो सिर्फ हैलो-हाय तक का ही हमारे साथ संबंध रखते हैं तो कुछ ऐसे  भी हमें मिलते है जिनके बारे में हम मन ही मन में यह तक  सोचते हैं कि ईश्वर करे दोबारा हमें कभी भी इसका चेहरा ना देखना पड़े लेकिन हम कारोबारी लोगों के मन की यें बात मन में ही रह जाती है क्योंकि उन्हें हम बोल नहीं सकते। वें हमारे ग्राहक होते हैं, यदि हम उनके साथ जो सोच रहे हैं उसे ध्यान में रखकर व्यवहार करेंगे तो हमारी रोजी-रोटी चलने से रही।


किसी भी व्यक्ति का स्वभाव, बोलने का तरीका और व्यवहार यें ही वें चीजें होती हैं जो उन्हें औरों से अलग करती है औ .... र... " नारायण ठाकुर द्वारा बोले जा रहे एक -एक शब्द को ऋषभ और उसका छोटा भाई ऋषि ध्यान पूर्वक सुन रहे थे तभी  ऋषभ के छोटे भाई ऋषि ने बीच में ही बोल दिया👇


ऋषि ( ऋषभ का छोटा भाई ) :- यह तो मुझे मालूम है कि बोलने के तरीके से हमें पता चल जाएगा कि वह कैसा आदमी है लेकिन फिर भी कुछ ऐसे लोग हमारे आसपास होते हैं जिनके बारे में हम सोचते तो कुछ और है लेकिन वह निकलते कुछ और है। हमारे बगल वाले चाचा को ही ले लीजिए, हमारे सामने मीठी-मीठी बातें करते हैं लेकिन एक दिन मैंने चुपके से उनकी बातें सुनी तो पता चला कि वह हम लोगों से बहुत जलते हैं।


नारायण ठाकुर ने ऋषभ और ऋषि की तरफ बारी-बारी से देखा। ऋषि अपने पिता से डरता तो था लेकिन ऋषभ की तरह नहीं। शायद! यही वजह थी कि अभी उसने अपने पिता से यह प्रश्न कर लिया था जो ऋषभ के मन में भी था लेकिन वह अपने पिता के डर की वजह से उनसे पूछ नही पाया था।


बारी - बारी से अपने दोनों बेटे को देखने के बाद नारायण ठाकुर ने फिर से कहना शुरू किया👇


नारायण ठाकुर :- हम सभी को  उम्र के किसी ना किसी पड़ाव पर  एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात होती ही है जिसके भीतर अहम और  स्वार्थ की भावना कूट-कूटकर भरी होती है। यें लोग अपने सगे - संबंधियों और अपनी जान - पहचान वाले को तभी याद करते हैं जब उनसे इनको स्वयं का काम निकलवाना हो।अक्सर यह देखा गया है कि जैसे ही इनका स्वयं का काम निकल जाता है यें अपने पहले वाले रूप में आ जाते हैं। जिसने इनकी मदद की होती है उसके भी यह सगे नहीं होते। इनके अंदर स्वार्थ इस तरह भरा होता है कि मैंने अपना फायदा दिख रहा है वहीं पर जाकर ऐसे लोग अपना काम निकलवाते हैं।


अपने आज तक के अनुभव के अनुसार यह कह रहा हूॅं कि ऐसे लोग किसी और को आगे बढ़ने देना नहीं चाहते। इनकी सोच होती है कि जो कुछ भी मिले सबसे पहले मुझे मिले। यहां तक कि दोस्ती जैसे पवित्र रिश्ते को भी यह दागदार करने में पीछे नहीं हटते। दोस्ती भी उसी से करते हैं जिससे इनका फायदा होता है। ऐसे लोगों की ना तो दोस्ती ही अच्छी होती है और ना ही दुश्मनी इसीलिए हम सभी को चाहिए कि ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखें। ऐसे लोग कभी भी हमारे सगे नहीं हो सकते बल्कि ऐसा हो सकता है कि यें  हमारा नुकसान ही करें। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में दोस्त और दुश्मन होते हैं, सबके हैं मैं ऐसा नहीं कह रहा कि सिर्फ मेरे ही है लेकिन ऐसे लोगों से दूर रहने के लिए मैं तुम लोगों को इसलिए कह रहा हूॅं क्योंकि ऐसे लोग हमारे दुश्मनों के साथ जाकर मिल भी जाएंगे और हमारा नुकसान कराने  में यें तनिक भी नहीं सोचेंगे।


नारायण ठाकुर वर्षों बाद अपने दोनों बच्चों के साथ इस तरह बैठ कर बातें कर रहा है जिसे देखकर उसकी माॅं अपने भोलेनाथ का धन्यवाद हाथ जोड़कर करना नहीं भूल रही है। आज ही तो उसने अपने इष्ट देव भोलेनाथ से अपने घर - परिवार और अपने बेटे के घर बसने की  प्रार्थना उनसे की थी और आज ही यह चमत्कार उसकी ऑंखों के सामने हो रहा है। इस दृश्य को देखने के बाद ऋषभ की दादी की ऑंखों में ऑंसू आए बिना कैसे नही रह सकते है? ऑंखो में आएं  इन ऑंसुओं को वह  बहने देना चाहती है क्योंकि बह रहे ये ऑंसू खुशी के ऑंसू हैं।


दरवाजे के कोने में खड़ी अपनी सास को देखकर रेणुका सोच में पड़ जाती है कि इस तरह से उसकी सास दरवाजे की ओट में क्यों खड़ी है? अपने क्यों का जवाब देखने और समझने के लिए वह उनके पीछे आती है। अपने दोनों बेटों को अपने पिता के सामने बराबर में बैठे देख कर उसे अपनी ऑंखों पर यकीन नहीं होता। एक बार तो अपनी ऑंखों को बंद करके वह फिर से खोलती है ये सोचकर कि कहीं वह दिन में ही कोई सपना तो नहीं देख रही है लेकिन जब ऑंखें खोलने के बाद भी फिर से उसे वही दृश्य दिखाई देता है तो उसे यकीन हो जाता है कि वाकई में यह कोई सपना नहीं बल्कि हकीकत है जिसे वह अपनी खुली ऑंखों से देख रही है।


नारायण ठाकुर अपने दोनों बेटे ऋषभ और ऋषि को समझा ही रहा होता है कि तभी उनकी नजर दरवाजे की ओट में खड़े अपनी माॅं और पत्नी पर पड़ती है जिन्हें देखने के बाद  उसके चेहरे की  रंगत बदलने का एहसास सास और बहू दोनों को ही होने लगता है। आगे क्या होगा?  जानने के लिए जुड़े रहे इसके अगले अध्याय से।


क्रमशः


गुॅंजन कमल 💓💞💓


# उपन्यास लेखन प्रतियोगिता 


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7 Comments

Barsha🖤👑

24-Sep-2022 10:04 PM

Beautiful

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Seema Priyadarshini sahay

24-Sep-2022 06:49 PM

बहुत खूब

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Mithi . S

24-Sep-2022 06:20 AM

Bahut achhi rachana

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